नागपत्री एक रहस्य-7
चंदा का खिला हुआ चेहरा और रह-रहकर मन ही मन मुस्कुराना स्पष्ट करता है, कि अवश्य ही उसने अपने पति की पूर्व प्राप्ति और उनके प्यार का एहसास, किसी अतृप्त भूमि पर पड़े हुए जल के समान एहसास किया।
आज सुबह जिस तरीके से दिनकर जी ने चंदा को प्रेम भाव में खींच कर अपने पीछे किया उसे खतरे में देख, यह वास्तव में दिनकर जी का प्रेम ही था, कि उन्होंने किसी
ढाल की तरह अपनी पत्नी के सामने खड़े हो गए।
ऐसा अगाध प्रेम और वह स्पर्श ये सब तो भूलाया नहीं जा रहा था, लेकिन चंदा भी सब कुछ जानते हुए दिनकर जी से ऐसी लिपटी जैसे पेड़ से लता।
दिनकर जी बहुत देर तक पेड़ पर झूलते हुए सर्प को देखते रहे, जब तक कि वह खुद वहां से चला ना गया हो।
सर्प के जाने के बाद जब दिनकर जी का ध्यान भंग हुआ, तब चंदा के जिस्म की गर्मी और लिपटन को उन्होंने महसूस किया, इतने वर्षों में कितनी ही बार वे चंदा से एकाकार हुए, लेकिन वह अनुभव आज प्रथम बार उन्होंने महसूस किया था, क्योंकि प्रेम का सही अर्थ उन्हें आज ही मालूम पड़ा।
उन्होंने घूमकर चंदा को अपनी बाहों में ले लिया, चंदा के बालों में हाथ घुमाया और माथे को चूमते हुए कहा, अब सब ठीक है।
चंदा ने मुस्कुराते हुए कहा, लगता है वाकई अभी तक आप नाग देवी की महिमा को नहीं समझ पाए, इस आम के पेड़ पर अक्सर यह दृश्य देखा जा सकता है, यहां तक कि कई दफा इन सर्प झूले पर बच्चों को लटकते या खेलते हुए भी आप देख सकते हैं।
इस गांव का कण कण पूर्ण रूप से संरक्षित है, यहां पर इंसान और सर्पों के बीच कोई बैर नहीं है, वे एक साथ ही छत के नीचे बिना किसी भय के रह सकते, इसलिए यदि आपको कहीं भी कोई भी सर्प या नाग नजर आए, तो उन पर वार ना करने का प्रयास ना करें।
थोड़े समय अपनी जगह पर स्थित होकर उन्हें नमस्कार कर, उन्हें जाने का मौका दे, या सिर्फ उनका रास्ता छोड़ दे, वे कभी किसी का हित नहीं करते हैं, यह बात और है कि यदि मैं उस समय साथ हुई तो आप यूं ही मुझे गले लगा कर चुंबन दे सकते हो, कहते हुए वे मुस्कुराने लगे।
दिनकर जी प्रेम रस में डूबे हुए, सिर्फ इतना ही कह सके, यह हक है तुम्हारा प्रिये, और दोनों राजी खुशी लौट चले।
इस बीच चंदा ने अपना बचपन, और अनेक छोटी-छोटी कहानियां, नाग जाति और मानव के मधुर संबंध की कह कर सुनाई, और दिनकर जी किसी बालक की तरह सुन रहे थे, क्योंकि आज तक इससे पहले उन्होंने सिर्फ सर्पों को एक विषधर और खतरनाक प्राणी के रूप में ही पढा और सुना था,
और यहां तक इसी डर के कारण जब कभी पिताजी नाग पंचमी के समय मंदिर चलने का कहते, तो भय के कारण वे आज तक कोई ना कोई कारण बताकर उसे टालते आए थे।
लेकिन आज पहली बार उन्होंने नाग देवता के रूप में और मानव के इतने करीब येसे खुले और प्रत्यक्ष में पाया, और इतने नजदिक से दर्शन करने के पश्चात पहली बार उन्हें एहसास हुआ, कि वह कहां तक गलत है, उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था, कि इस धरती पर मानव जाति के अलावा और भी कई प्रजातियां आई और गई।
उन्होंने पढ़ा तो बहुत कुछ, लेकिन शायद वे वह ना पढ़ सके, जिसे पढ़ना अनिवार्य था, वह वास्तविक दुनिया जो हमारे चारों ओर फैली हुई है, जिसे हम कभी भी कहानी किताबों में नहीं पढ़ पाए, या यूं कहें जिसे जानबूझकर पढ़ाया ही ना गया हो, जिसे हमारे बीच उन्होंने अथक प्रयास से समझा और लिखा ।
लेकिन नौकरी पेशा होने की होड़ में उन्हें पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया, वह यह सोच ही रहे थे कि तभी एक तेज फुंकार के साथ उनकी तनिद्रा टूटी, और उन्होंने ध्यान दिया कि थोड़ी दूरी से एक विशाल नाग का जोड़ा, येसे गुजर रहा था जैसे हमारी उपस्थिति से उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता।
चंदा ने उस समय उन्हें छू कर प्रणाम किया, और उसी का अनुसरण करते हुए पहली बार दिनकर जी ने भी किसी नाग के जोड़े को प्रणाम किया, उनके मन में डर बिल्कुल भी नहीं था।
श्रद्धा से परिपूर्ण वे अब नाग महिमा को समझ चुके थे, घर आने पर जब चंदा ने सभी बातें बतलाई, तब तक चंदा के पिताजी मास्टर जी लौट कर आ चुके थे, उन्होंने दिनकर जी को प्यार से कुछ उत्तम पुराणों के साथ एक नाग पत्रिका का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने बताया कि किस तरह नाग कन्याओं का जन्म शिव जी की पुत्री के रूप में हुआ ।
नागपत्री उन नाग कन्याओं का रहस्य है, जिनके विषय में उनकी माता को ही ज्ञात नहीं था, इन संपूर्ण सृष्टि के जन्मदाता आदिश्वर शिव, जिन्हें कहीं भोलेनाथ, सृष्टिकर्ता तो कहीं भक्ति पूर्वक महाकाल, महादेव के नाम से भी पुकारा जाता हैं।
जिनके जन्म की कथा अत्यंत ही निराली है, ऐसा कहा जाता है कि, इनका जन्म भगवान शिव की मंद मुस्कान और मनः शक्ति से हुआ, जिनसे मिलने वे ब्रह्म मुहूर्त में जाया करते थे,
और माता पार्वती ने भगवान शिव का पीछा कर जब जाकर देखा, तब कहीं उन्हें इस बात का पता चला।
नाग पंचमी के समय इन्हीं पांच पुत्रियों के साथ भगवान शिव का पूजन किया जाता है, ये इन नाग देवियों के द्वारा एक भक्तों की सेवा से प्रसन्न होकर उस पत्री को लिखा गया, जिसके विषय में बहुत कम लोगों को ही ज्ञान हैं,
नागपत्री वह रहस्य है, जिसका विचार भी कर पाना ठीक उसी तरह दुर्लभ है, जिस तरह महा सप्तशती के पाठ का अंतिम श्लोक, जिसका पठन और पाठन बिना शिवकृपा के नहीं हो सकता, यह नागपत्री स्वर्ण ताम्रपत्र पर लिखी हुई वह कृति है, जिसमें संसार के संपूर्ण रहस्य छिपे हैं,
ब्रह्मांड की उत्पत्ति से लेकर विनाश तक सारा ज्ञान इसमें छिपा हुआ है।
दिनकर जी को उनके ससुर जी (मास्टर जी ) के द्वारा बताई गई कहानी बहुत ही आश्चर्य चकित और दिलचस्प भी लग रही थी, उन्होंने वहीं आसन बिछाकर बैठ, और उनके ससुर जी के द्वारा बताई गई सारी बात को बहुत ध्यान पूर्वक सुन रहे थे, और मन ही मन सोच रहे थे, कि मैं कितना अज्ञान हूं, जो मैं इन सब रहस्यों को आज तक नहीं जान पाया, अच्छा हुआ कि मैं चंदा के साथ एक बार इस पवित्र स्थान पर आ पाया,
आगे दिनकर जी को और क्या क्या रहस्य जानने के लिए मिलेंगे????
क्रमशः .....
Babita patel
15-Aug-2023 01:55 PM
Nice
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